हरियाणा में पशुपालन बना ट्रेड, लाभ के साथ मिल रहा है सम्मान
झज्जर, हरियाणा में अब पशुपालन केवल घरेलू लाभ के लिए ही नहीं, बल्कि मान व सम्मान के लिए भी पशुपालन में बढोत्तरी हो रही है। पशुपालन अब प्रदेश में एक टे्रंड का रूप ले चुका है। जिस सोच और लक्ष्य को लेकर कृषि मंत्री ओमप्रकाश धनखड़ ने पशुपालकों के लिए बड़े आयोजन शुरू करवाए थे, अब उन आयोजनों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिल रहे हैं। ऐसा ही नजारा इन दिनों झज्जर पुलिस लाईन के मैदान में चल रहे 36वी राज्य पशुधन प्रदर्शनी में देखा जा सकता है।
झज्जर के बहादुरगढ़ रोड़ पर पुलिस लाईन के मैदान में शुक्रवार से शुरू हुए इस पशुधन मेले में अजीब एवं हर पशुपालक के दिल को सुकून देने वाला दृश्य है। यहां आने वाले लोगों को राष्टï्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में जीत चुके ऊंट, बकरी, शुकर, घोड़े, भैंस, गाय, झोटे और सांड हर ओर देखने को मिल जायेंगे। हर ओर पशुपालक एक दूसरे की प्रगति को देखकर खुश होते हुए पशुपालन का नया तरीका सीखने की कोशिश करते दिखेंगे।
कुछ साल पहले तक हरियाणा में पशुपालन हर किसी के लिए फायदे का सौंदा नहीं माना जाता था लेकिन जब से ऐसे बड़े पशुधन मेले सरकारी तौर पर लगने शुरू हुए हैं, इन मेलों के माध्यम से लोगों को पशुपालन की नई तकनीकों का तो पता चलता ही है। साथ ही सरकार द्वारा दी जा रही सुविधाओं का लाभ भी उन्हें आसानी से मिल जाता है। वास्तव में देखा जाए तो इन मेलों के माध्यम से हरियाणा में पशुपालन और पशुपालकों को संजीवनी देते हुए नए सिरे से बेहतर कार्य करने का मौका मिला है।
तकनीक एवं उपकरणों से मिला फायदा :
पशुपालन अब केवल पारंपरिक तरीके से ही नहीं किया जाता है। पशुपालन में अनेक तकनीकों और उपकरणों का भी प्रयोग होने लगा है। पहले जहां दूध निकालने में ही घंटों का समय और कई आदमियों की जरूरत होती थी। अब उसी काम को कुछ ही आदमी मशीनों के माध्यम से बहुत कम समय में कर देते हैं। पशु डेयरी में साफ सफाई से लेकर गोबर से खाद बनाने, उत्पाद बनाने, गोबर गैस बनाने जैसे सभी कार्य अब मशीनों से होने लगे हैं, जिससे पशुपालकों को ओर अधिक लाभ होने लगा है।
विवाह शादियों में ऊंट के डांस से करते हैं कमाई :
चरखी दादरी जिला के लाड गांव के ऊंट पालक सोमबीर मेले में अपने सोनू नामक ऊंट को लेकर आएं है और उनके ऊंट को दूसरा स्थान मिला है। सोमबीर बताते हैं कि उनके पास 4 ऊंट और 4 घोडिय़ांं हैं। विवाह शादियों में उनके ऊंट व घोडिय़ों को विशेष तौर पर नचाने के लिए बुलाया जाता है और दो बड़ी विशेष चारपाई पर ऊंट का डांस होता है। इसके लिए उन्हें 25 हजार रूपए मिल जाते हैं।
गोबर व गौ मूत्र से बनाते हैं उत्पाद, वहीं होता है दूध का प्रयोग :
स्वामी संपूर्णानंद द्वारा संचालित झज्जर व करनाल गुरूकुल की गौशाला से आए सादक बताते हैं कि उनकी गौशाला से दूध सहित गोबर व गौ मूत्र को बेचा नहीं जाता है। दूध का वहीं पर गुरूकुल में ही प्रयोग हो जाता है और गोबर व गौ मूत्र को कई तरह से प्रयोग में लाया जाता है। गोबर से सबसे पहले गोबर गैस बनाई जाती है और और उसके बाद गोबर से खाद बनती है। यहीं नहीं गोबर से पंचगव्य भी बनाया जाता है। गौ मूत्र का प्रयोग गौ मूत्र अर्क बनाने के लिए किया जाता है।