मेयर और चेयरमैनों को हटा सकेंगे पार्षद
चंडीगढ़- हरियाणा सरकार ने नगर-निगमों के मेयर और नगरपरिषदों के चेयरमैन को हटाने की पाॅवर अब पार्षदों को दे दी है। अब पार्षद अपनी मर्जी से मेयर और चेयरमैन को हटा सकेंगे। मेयर या चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए दस पार्षदों की जरूरत होगी। मेयर या चेयरमैन को हटाने के लिए 75 फीसदी पार्षदों का समर्थन होना जरूरी है। हालांकि ये अभी साफ नहीं है कि मेयर या चेयरमैन को हटाने के बाद नया चेयरमैन या नया मेयर किसे बनाया जाएगा! क्या फिर से चुनाव कराया जाएगा या फिर सीनियर डिप्टी मेयर को इसका चार्ज दिया जाएगा! अगर ऐसा होगा तो वो कैसे संभव होगा! मुख्यमंत्री ने शुक्रवार को बताया कि विधानसभा में इस बाबत बिल पारित किया गया है।
उन्होंने कहा कि चुनाव के समय ये बात ध्यान में नहीं लाई गई थी। अब मामला संज्ञान में आया है तो इस पर कानून बनाया गया है। हालांकि कई ऐसे सवाल है जिसे लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है! इधर पंचायों के चुनाव में 50 प्रतिशत आरक्षण महिलाओं को भी देने का बिल पास किया गया है। इस बीच सवाल कई तरह के है! माना जा रहा है कि जिन मेयरों, चेयरमैनों का अपने विधायक के साथ किसी वजह से टकराव है या फिर जहां पर सरकार को लगता है कि फंला मेयर किसी विधायक के लिए चुनौती साबित हो सकता है तो ऐसे लोगांे को नापा जा सकता है। दरअसल कई जगहों पर मेयरों और विधायकों के बीच टकराव चल रहा है। कई जगहों पर सांसदों और मेयरों के बीच भी विवाद है। लेकिन सांसद और विधायक या मंत्री चाह कर भी मेयरों या चेयरमैनों को हटा नहीं पा रहे थे क्योंकि मेयरों और चेयरमैनों का चुनाव सीधे तौर पर जनता द्वारा किया गया था और ये कानून भी हरियाणा की मनोहर सरकार ने ही बनाया था।
बहरहाल अब मेयरों और चेयरमैनों को इस बात का डर रहेगा कि उनकी कुर्सी पार्षदांे के विरोध से जा सकती है। उन्हें मंत्री, विधायक और सांसद से तो बना कर रखनी ही होगी साथ ही पार्षदों पर रौब चलाने से भी बचना होगा। हालां िएक अंदेशा ये भी रहेगा कि पार्षद खुद को मिले इस नए अधिकारों की वजह से ब्लैकमेलिंग का खेल भी शुरू कर सकते है। दरअसल पहले मेयर या चेयरमैन का चुनाव जनता की ओर से न हो कर पार्षदों द्वारा किया जाता था। इसमे बड़े पैमानें पर खरीद-फरोख्त होती थी। पार्षद पैसे लेकर पाला बदल लेते थे। यहां तक कि सियासी दलांे की टिकट पर चुने हुए पार्षद भी पैसों के चक्कर मंे पाला बदल लेते थे। इसी खरीद फरोख्त की आशंका को देखते हुए हरियाणा की मनोहर सरकार ने चेयरमैनों और मेयरों का चुनाव डायरेक्ट कराने के लिए कानून बनाया था। कुल मिला कर अभी कई सवाल है जिनका जवाब आना अभी बाकी है।
अगर पार्षद किसी मेयर या चेयरमैन के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने में कामयाब होते है तो ऐसी स्थिति में क्या दोबारा से मेयर या चेयरमैन का चुनाव होगा!
मेयर और चेयरमैनों की सीटें महिलाओं, अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है वहां पर अगर मेयर या चेयरमैन को हटाया जाता है और सीनियर डिप्टी मेयर या डिप्टी मेयर या वाइस चेयरमैन अगर उस जातीय श्रेणी में नहीं आता तोे फिर क्या दोबारा से चुनाव होगा!
3.अगर पार्षदों को चेयरमैन को हटाने का अधिकार मिल जाता है तो क्या फिर से पैसांे का खेल शुरू नहीं हो जाएगा। यानि कुर्सी बचाने के लिए अगर पार्षदों को रजामंद करना होगा तो जाहिर तौर पर हार्स ट्रेडिंग शुरू होगी।
4.अगर किसी के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आता है तो क्या वो हाईकोर्ट का दरवाजा नहीं खटखटाएगा, तब ऐसी स्थिति में सरकार को जवाब देना मुश्किल होगा!
सवाल ये है कि जब पार्षदों को नया चेयरमैन या मेयर चुनने का अधिकार ही नहीं है तो फिर पुराने मेयर या चेयरमैन को हटाने का अधिकार कैसे मिल सकता है।
क्या आने वाले समय में सरकार निगमों के मेयर और चेयरमैनों का चुनाव भी पार्षदों के जरिए कराने पर विचार तो नहीं कर रही है।