सडक़ सुरक्षा के लिए पर्यावरण संरक्षण अति आवश्यक : प्रो. कुमार
सोनीपत इंडिया की दहाड़ ब्यूरो ( आदेश त्यागी ) वायु प्रदूषण की बढ़ती गहनता ने पारदर्शिता (दृश्यता) लगभग खत्म कर दी थी। इससे थोड़ी दूरी पर देखना और दिखाना आसान नहीं रह गया था। पर्यावरण और सडक़ सुरक्षा का एक दूसरे से गहरा जुड़ाव है। विशेषकर सर्दियों के मौसम में यह जुड़ाव और गहरा हो जाता है। ऐसे में सडक़ सुरक्षा प्रबंधन के अंतर्गत पर्यावरण संरक्षण को बढावा देना अवश्यक है। दीनबंधु छोटूराम विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, मुरथल के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार सिविल इंजीनियरिंग विभाग द्वारा सडक़ सुरक्षा पर आयोजित वर्कशाप के समापन के अवसर पर बतौर मुख्यातिथि के तौर पर प्रतिभागियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा ठंड के मौसम में कोहरा छा जाता है, जिससे सडक़ दुर्घटनाएं होती हैं। उन्होंने कहा कि लोग खेतों में पराली जलाते हैं, जिससे धुंआ बढऩे से धुंध में भी इजाफा होता है। उन्होंने कहा कि पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से प्रदूषण बढ़ रहा है। इससे कोहरा घना हो जाता है, जिससे सडक़ पर देखने की क्षमता प्रभावित होती है। इसके अतिरिक्त सडक़ का निर्माण कार्य करते वक्त धूल कण इत्यादि के उत्सर्जन के कारण वायु प्रदूषण में वृद्धि होती है जो बाद में कोहरे को बढा देती है। कोहरे की मार का प्रभाव उन शहरों में अधिक होता है, जहां हवा में प्रदूषण अधिक है। जाड़ों में निर्माण कार्यो में तेजी, बढ़ते वाहन और अन्य औद्योगिक प्रदूषणों के नमी के संपर्क में आने से कोहरा बढ़ता है। वैज्ञानिक शोधों से पता चला है कि जीवाश्म और जैविक ईंधन की खपत बढऩे से न केवल भारत, बल्कि पूरे ही दक्षिण एशिया में कोहरे का प्रकोप बढ़ा है। उन्होंने कहा कि धुंध और धुएं के बादल आसमान में छाकर कई-कई दिनों तक धूप को रोक देते हैं। कोहरा यातायात व्यवस्था को तो पंगु कर ही देता है, सडक़ों पर रेंगते वाहन अर्थव्यवस्था को भी क्षति पहुंचाते हैं। इसके अतिरिक्त सर्दियों में सडक़ दुर्घटनाओं का मुख्य कारण कोहरा है। इस अवसर पर प्रो. डी. सिंघल, डा. वीएस. अहलावत, डा. बिरेंद्र हुड्डा, प्रो. अजय मोंगा, डा. अमन अहलावत व बिजेंद्र अटकान आदि उपस्थित थे।