जिस तरह विलुप्त हो रही है गौरैया क्या उसी तरह गुम हो जाएगा डाकिया एक दिन चिट्ठियां
इन दिनों मेरे घर डाकिया नहीं आता
जबकि पहले रोज आता था और
लाता था खूब सारी चिट्ठियां
जादुई झोले में भरकर
मैं अब सोचना नहीं चाहता हूं कि
आखिर उसका क्या हुआ होगा
फिर भी याद आता है वह
आंगन में रोज फुदकने वाली गौरैया की तरह
जिस तरह विलुप्त हो रही है गौरैया
क्या उसी तरह गुम हो जाएगा डाकिया एक दिन
जिसके आने भर से चेहरे पर चमक आ जाती थी
वह भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगा!