खुफिया एजेंसियों को कंप्यूटरों का डाटा जांचने का अधिकार देने के फैसले पर सियासी संग्राम छिड़ा
नई दिल्ली, केंद्र सरकार के खुफिया एजेंसियों को कंप्यूटरों का डाटा जांचने का अधिकार देने के फैसले पर सियासी संग्राम छिड़ गया है। इसे लेकर सभी विपक्षी दलों ने एक साथ मोदी सरकार पर हमला बोल दिया है। विपक्षी नेताओं ने एक सुर में सरकार के इस फैसले की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही करार दिया है। कांग्रेस से लेकर वामदलों तक सभी इस फैसले के खिलाफ हो गए हैं। वहीं सरकार ने इस पर सफाई देते हुए कहा कि कोई नया अधिकार नहीं दिया गया है। गृह मंत्रालय ने कहा है कि किसी भी एजेंसी को कोई नया अधिकार नहीं दिया गया है। कंप्यूटर मॉनिटरिंग, इंटरसेप्शन जैसा मामला सक्षम अधिकारी, जैसे गृह सचिव की अनुमति से ही आगे बढ़ेगा।
कांग्रेस का हमला
कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने कहा कि अगर कोई कंप्यूटरों की निगरानी करेगा तो यह ऑरवेलियन स्थिति (एक ऐसी परिस्थिति जिसे जॉर्ज ऑरवेल ने स्वतंत्र समाजद के लिए विनाशकारक बताया था) होगी। वहीं कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने भी इसकी तीखी आलोचना की। उन्होंने मोदी सरकार के नारे की ही तर्ज पर ट्वीट किया, ‘अबकी बार निजता पर वार। चुनाव हारने के बाद मोदी सरकार अब आपके कंप्यूटर की जासूसी करना चाहती है। यह निंदनीय प्रवृत्ति है।’
ममता-केजरीवाल भी बिगड़े
तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने भी इसे लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने इसे खतरनाक बताते हुए मुद्दे पर जनता की राय मांगी है। दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने भी इस फैसले पर सवाल उठाए। उन्होंने कहा- ‘मई 2014 से भारत अघोषित इमरजेंसी के दौर से गुजर रहा है। नागरिकों के कंप्यूटर पर निगरानी के फैसले से मोदी सरकार ने सारी हदें पार कर दी हैं। क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अधिकारों का ऐसे हनन होगा।’