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एसडी पीजी कॉलेज के सात दिवसीय मेगा एनएसएस कैंप का तीसरा दिन

एसडी पीजी कॉलेज में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय एनएसएस पाठ्यक्रम के अनुसार आयोजित सात दिवसीय मेगा एनएसएस कैंप का आज तीसरा दिन रहा

जिसमे श्रीमती रोहनी भोकर फर्स्ट ऐड ट्रेनर एवं होम नर्सिंग जिला रेड क्रॉस पानीपत ने एनएसएस कार्यकर्ताओं को फर्स्ट-ऐड के गुर सिखाये

ताकि वे गाँव में लोगो को फर्स्ट-ऐड की जानकारी और आपातकाल में उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना है बता-सिखा सके.

इस अवसर पर कॉलेज प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा, कॉलेज में एनएसएस प्रभारी डॉ राकेश गर्ग एवं डॉ संतोष कुमारी और डॉ एसके वर्मा

ने युवा एनएसएस कार्यकर्ताओं के जज्बे और सामाजिक कर्तव्यबोध की सराहना की और उनका हौंसला बढाया.

आज ग्रामीण पुरुषों विशेषकर किसानों के साथ एनएसएस प्रभारी डॉ राकेश गर्ग ने बातचीत की और उनसे प्रदूषण और पर्यावरण संतुलन

के महत्व पर विस्तार से चर्चा की. ग्रामीण किसानों पर भी इन बातों का असर दिखाई दिया और उन्होनें खेतों में पराली, कूड़ा तथा अन्य

अवशेष न जलाने का

भरोसा दिलाया. आज आपदा राहत और पुनर्वास विषय पर भी विशेष जागरूकता अभियान चलाया गया.

श्रीमती रोहनी भोकर फर्स्ट ऐड ट्रेनर एवं होम नर्सिंग जिला रेड क्रॉस पानीपत ने एनएसएस कार्यकर्ताओं को फर्स्ट-ऐड के गुर सिखाते हुए कहा

की प्राथमिक चिकित्सा दम घुटने, ह्रदय गति रूकने, खून बहने, शरीर में जहर के होने, जल जाने, गर्मी के स्ट्रोक, बेहोश या कोमा की स्थिति में,

मोच, हड्डी टूटने और जानवर के काटने पर दी जाती है. प्राथमिक चिकित्सा के उद्देश्य घायल व्यक्ति की जान बचाना, उसको बिगड़ी हालत से बाहर लाना

और उसकी तबियत के सुधार में बढ़ावा देना होने चाहिए.

प्राथमिक चिकित्सा के सिद्धांतो पर बोलते हुए मीना कम्बोज ने कहा की सबसे पहले हमें घायल व्यक्ति की सांस की जाँच करनी चाहिए,

अगर चोट लगी है और रक्त बह रहा हो तो जल्द से जल्द रक्तस्राव को रोकना चाहिए, अगर घायल व्यक्ति को सदमा लगा हो तो

उसे समझाना और सांत्वना देनी चा

हिए, अगर व्यक्ति बेहोश हो तो उसे होश में लाने की कोशिश करनी चाहिए,

अगर हड्डी टूट गयी हो तो व्यक्ति को सीधा करके उसका दर्द कम करना चाहिए और जितना जल्दी हो सके घायल व्यक्ति को नजदीकी अस्पताल

या चिकित्सालय पहुँचाना चाहिए. उन्होनें कहा

की फर्स्ट ऐड पूर्ण चिकित्सा नहीं होती है किन्तु इससे अस्पताल ले जाने के लिए मरीज की स्थिति को बेहतर किया जा सकता है.

अस्पताल ले जाते समय या मदद का इंतजार करते वक्त किसी व्यक्ति को फर्स्ट ऐड देने से उसकी जान बच सकती है.

ऐसी परिस्थितियों में घर पर फर्स्ट ऐड किट रखना जीवनदायी होता है अन्यथा पीड़ित व्यक्ति के अस्पताल पहुंचने से पहले स्थिति बिगड़ सकती है.

घर में फर्स्ट ऐड किट का होना किसी चोट या दुर्घटना की गंभीरता को कम करने में मदद कर सकता है. उन्होनें कहा कि फर्स्ट ऐड किट घर पर

बनाई जा सकती है और हमें इस किट में विभिन्न प्रकार के आइटम शामिल करने चाहिए जो कि कट, खरोंच, मोच, चोटों, जलन इत्यादि के

समय इलाज में हमारे काम आये. फर्स्ट ऐड किट के अंदर आवश्यक वस्तुओं में मलहम, एंटीसेप्टिक वाइप्स, कॉटन वूल, क्लीन ड्रेसिंग, ग्लव्स,

बैंडेज और कई जरूरी दवाईयां शामिल होनी चाहिए. किसी भी चीज के इस्तेमाल हो जाने पर उसे किट में नियमित रूप से पुन: रखे और सबसे

महत्वपूर्ण बात यह है कि हमें दवाइयों और अन्य सामान की समाप्ति की तिथि का भी नियमित ध्यान रखना चाहिए.

प्राचार्य डॉ अनुपम अरोड़ा ने एनएसएस कार्यकर्ताओं का हौंसला बढ़ाते हुए कहा की समय की मांग है की आज के युवा सभी को अपने साथ लेकर चले.

कोरोना आपदा ने वैसे भी सामूहिक जीवन के महत्व को और उजागर किया है. आज के एनएसएस कार्यकर्ताओं के जज्बे, हौंसले और कार्यों को देख कर

उन्हें इस बात की तस्सली हो गई है की अब भी युवा जिम्मेदार और प्रगतिशील है. गाँव में साफ़-सफाई, जागरूकता और साक्षरता के अभियान चला कर

इन युवाओं ने राष्ट्र के निर्माण में अपना स्थान और उत्तरदायित्व सुनिश्चित किया किया है.

एनएसएस प्रोग्राम ऑफिसर डॉ राकेश गर्ग ने प्रदूषण और पर्यावरण संतुलन पर ग्रामीणों को समझाते हुए कहा की धान और गेहूं की कटाई के

बाद किसान खेतों को जल्दी खाली करके दूसरी फसल रोपने के उद्देश्य से खेतों में ही पराली और अन्य कूड़े को जला देते हैं. इस पराली को जलाने

से भूमि को बहुत क्षति पहुंचती है. इससे खेतों के आसपास के वातावरण का तापमान बहुत बढ़ जाता है तथा पानी सूख जाने के कारण फसल के

लिए पानी की आवश्यकता भी बढ़ जाती है. खेतों में मौजूद भूमिगत कृषि मित्र कीट तथा अन्य सूक्ष्म-मित्र जीव आग की तपिश से मर जाते हैं और

शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाने के कारण नई बोई गई फसलों को तरह-तरह की बीमारियां घेर लेती हैं. इसके परिणामस्वरूप भूमि की उर्वरता कम

हो जाती है तथा उत्पादन घट जाता है. पराली के धुएं से वायुमंडल में कार्बन डाईऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और मिथेन गैसों की मात्रा बहुत

बढ़ जाती है जो स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है. इससे वातावरण बुरी तरह प्रदूषित होता है तथा लोगों की त्वचा एवं सांस संबंधी तकलीफें बढ़

जाती हैं. विषैले धुएं के कारण वायुमंडल में चारों ओर गहरा धुंधलका छा जाता है और दृश्यता कम हो जाने के कारण बड़ी संख्या में वाहन दुर्घटनाओं

के अलावा कई बार किसान और उनके परिजन अपनी ही लगाई पराली की आग की चपेट में आ कर या तो घायल हो जाते हैं या फिर मौत के मुंह में समा

जाते है. उपाय सुझाते हुए डॉ राकेश गर्ग ने कहा की जलाने की बजाय किसान सीधी बिजाई का तरीका अपना सकते हैं. वे पिछली फसल की खड़ी

पराली के बीच ही अगली फसल रोप सकते है और सूखी हुई खड़ी फसल धीरे-धीरे खाद में बदल कर फायदेमंद साबित होती है. गली हुई पराली भूमि

के जैविक और उर्वरक तत्वों में वृद्धि करती है. उन्होनें किसानो को समझाया की

वे पर्यावरण से स्नेह का रिश्ता बनाकर रखे वरना इसके दुष्परिणाम उन्हें और उनकी आने वाली पीढ़ियों को झेलने होंगे.

आपदा राहत तथा पुनर्वास विषय पर बताते हुए डॉ संतोष कुमारी ने कहा की जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है

तब आपदायें आती हैं जिसके कारण विकास एवं प्रगति बाधित होती है. प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ विपत्तियाँ

मानव जनित भी होती हैं. हाल ही में उत्तराखंड में ग्लेशियर का टूटना मानव द्वारा प्रकृति के क्रूर दोहन का ही परिणाम था.

 

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