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भारतीय युवाओं में बढ़ रहा हार्ट अटैक का खतरा*

 बदलते लाइफस्टाइल और मुश्किल आर्थिक-सामाजिक हालात के साथ दिल से जुड़ी बीमारियां भी तेजी से बढ़ रही हैं. एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम यानी हार्ट अटैक जैसी जानलेवा बीमारी के केस भारत में काफी ऊपर जा रहे हैं. करीब 25 फीसदी आबादी, खासकर जिनकी उम्र 40 से नीचे है, वो ऐसी है जो हार्ट संबंधी परेशानियों से जूझ रही है. इस कारण हार्ट फेल होने तक की नौबत आ रही है.
यानी देश की आबादी एक बड़ा युवा वर्ग हार्ट डिसीज की गिरफ्त में है. इसी को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के शालीमार बाग स्थित मैक्स सुपर स्पेशयलिटी अस्पताल ने पानीपत में एक जनजागरुकता कार्यक्रम आयोजित किया. इस कार्यक्रम का मकसद लोगों को दिल की सेहत से जुड़ी जानकारी देने के साथ ये भी बताना है कि कैसे समय पर समस्याओं के प्रति सचेत होने से हार्ट अटैक और उससे होने वाली मौत से खुद बचाव किया जा सकता है.
दिल से जुड़ी दिक्कतों और बचाव जैसे तमाम अहम पहलुओं पर *मैक्स अस्पताल शालीमार बाग में इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी के विभाग प्रमुख और डायरेक्टर डॉक्टर नवीन भामरी* ने अपनी राय लोगों के सामने रखी.
डॉक्टर नवीन भामरी ने कहा, ”भारत में अलग-अलग बीमारियों और प्री-मेच्योर डेथ के मामले देखे जाएं तो इनमें कम से कम 50 फीसदी केस वो होते हैं जो दिल से जुड़ी बीमारियों के हैं. इससे भी चौंकाने वाली बात ये है कि 25-40 की उम्र के बीच के लोगों में ये समस्या बढ़ रही है. 25-35 की उम्र के बीच के (पुरुष और महिला दोनों) लोगों में चार में से एक मौत का कारण हल्के लक्षणों को नजरअंदाज समझा गया है और हार्ट केस में मृत्यु दर बढ़ने की वजह भी इसे ही माना गया है. असिम्प्टोमैटिक यानी बिना लक्षण वाले हार्ट अटैक के लक्षण आमतौर पर 20 और 30 की उम्र के शुरुआती दौर में नजर आते हैं. यही लक्षण 40 की उम्र आते-आते घातक हो जाते हैं. लिहाजा, समय पर इलाज कराया जाए तो इन हालातों से बचाव हो सकता है.”
आमतौर पर यंग एज में दिल की बीमारी का पता नहीं चल पाता जिसका दुष्परिणाम ये होता है कि दिल ठीक से काम करना बंद कर देता है और फिर हार्ट फेल होने जैसी जानलेवा घटनाएं हो जाती हैं. अक्सर लोगों को सीने में दर्द, दबाव या भारीपन, जबड़ों में दर्द, बाएं कंधे में दर्द, हाथों में दर्द, कोहनी और कमर में दर्द की शिकायत होती है. इसके अलावा कई लोगों को सांसे रुक-रुक कर आना, जी मचलाना, थकान, चक्कर, ठंडा पसीना और बेहोशी जैसे दिक्कतें भी होती हैं. किसी मरीज में इनमें से कोई एक लक्षण होता है, तो किसी को एक से ज्यादा समस्याएं भी रहती हैं, ये अलग-अलग व्यक्ति की हालत और स्टेज पर निर्भर करता है. जिन लोगों को कई बार हार्ट अटैक आया हो या जो लोग डाइलेटेड कार्डियोमायोपैशी के मरीज हों, उनके एडवांस स्टेज में हार्ट फेल की आशंका रहती है.
हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर नवीन ने बताया, ” आजकल 20, 30 और 40 की एज वाले काफी लोगों को हार्ट की बीमारियां हो रही हैं. मॉडर्न जमाने की लाइफस्टाइल और स्ट्रेस ने यंग लोगों के दिल कमजोर कर दिए हैं. फैमिली हिस्ट्री और जैनेटिक प्रॉब्लम के चलते हार्ट डिसीज होना तो बहुत आम बात है, लेकिन अधिक स्ट्रेस, कई-कई घंटे काम करना और ठीक से न सो पाना जैसे कारणों से भी युवाओं के दिल बीमार होने का खतरा बढ़ रहा है. इसके अलावा स्मोकिंग और लगातार बैठे रहना या आलस से भी 20-30 की उम्र के युवाओं में हार्ट डिसीज का खतरा बढ़ रहा है.”
एक धारणा ये भी है कि हार्ट की समस्या तो उम्रदराज लोगों में और बड़े-बड़े शहरों के लोगों को होती है. ये मिथ धीरे-धीरे खत्म हो रहा है. टायर-1 और टायर-2 शहरों में दिल से जुड़ी बीमारियों के मरीज काफी हैं. इन छोटे शहरों में भी वाल्व, आर्टरी ब्लॉकेज, खराब दिनचर्या और वायरल इंफेक्शंस जैसी बीमारियों के मरीज पाए जा रहे हैं. इतना ही नहीं, चाहे युवा हों या मिडिल एज के लोग या फिर बुजुर्ग, सभी दिल से जुड़ी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं.
मैक्स अस्पताल शालीमार बाग के हार्ट स्पेशलिस्ट डॉक्टर नवीन ने अंत में लोगों से ये कहा कि हार्ट अटैक की बात सुनकर घबराहट जरूर होती है, लेकिन इसका इलाज किया जा सकता है. समय पर इसके लक्षणों को पहचानें और फिर स्पेशलिस्ट को दिखाएं, इस तरह आप अपने दिल को सुरक्षित और स्वस्थ रख सकते हैं. साथ ही उन्होंने बताया कि हार्ट अटैक और हार्ट फेल से बचने के लिए सबसे अहम और आसान उपाय ये हैं कि अपनी लाइफस्टाइल और खाने की आदतों को सुधारें, ताकि माटापे, डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर जैसी पेरशानियां आपको जकड़ न सकें और आपका दिल स्वस्थ तरीके से धड़कता रहे.

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